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पनपने के सच–बुढ़ापा

बचपन पनपता है,

जवानी मचलती है

बुढ़ापा ठहरता है,


बुढ़ापा बुफे है उम्र का,

इसमें सब शामिल है,

बचपन की पुकार

जवानी का जोश,

गर आपको हो होश!


समंदर है ये,

लहरें जिसकी जवानी है,

बूंद बूंद 

बचपन की रवानी!


बुढ़ापा, थकान नहीं है,

रस्तों के मोड़ की पहचान है,

ये आपके सोच का सच नहीं

सोच, दुनिया की जागीर है,

सही–गलत की जंजीर,

अगर यूं बूढ़े हुए तो

आप उम्र का शिकार हैं!




बुढ़ापा साहिल है, तटस्थ

लहरों को हर हाल भिगोने वाला,

जोश जवानी का लिए जो आई

उसे यकीन दिलाने वाला

हां, तुमने डुबा दिया


बुढ़ापा; वो जो न तौले,

न मोले, न बोले,

मंजूर करे,

हर उम्र, हर हाल

"हां, तुम चलते रहो"

बचपन है तो बचे रहो,

जवानी है तो बहो!



बुढ़ापा भी मंज़िल नहीं है,

एक उम्र का अंजाम,

हां, जाम जरूर है,

अगर खुद को मान लें,

मान दें,

सामान नहीं है जो उठाना है,

बस एक और मोड़ है,

हंसते हंसाते गुजर जाना है!



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